2024
- संजीव जिंदल (साइकिल बाबा)
- Sep 29, 2020
- 2 min read
ये बात कोई 2024 की है। मुन्नी पहली बार #जियो_एक्सप्रेस में बैठे कर अप
ने परिवार के साथ लखनऊ से दिल्ली जा रही है। वो पहली बार रेल में बैठी है। दिल्ली में उसके मामा फैक्ट्री में काम करते हैं। #सरकारी_नौकरी की तैयारी को दिल्ली गए थे। नौकरी नहीं लगी तो वहीं प्राइवेट कंपनी में ही नौकरी कर ली।
बहुत मुश्किल से टिकट हुआ है रेल का। अब ट्रेन में #जनरल_डिब्बे नहीं होते हैं। पहले होते थे लेकिन जब से #मुकेश_अंबानी ने रेल के इस जोन को खरीदा तब से "कुर्सी यान" से नीचे कोई बुकिंग नहीं होती है।
लखनऊ से दिल्ली प्रति व्यक्ति 1200 रुपए किराया है। बेचारा मुन्नी का परिवार पैसे जोड़ कर बड़ी मुश्किल से चार लोगों का टिकिट बनवाया है।
अभी रेल 2 घंटे ही चली थी कि मुन्नी के पेट में चूहों ने उछल कूद शुरू कर दी। भूख से परेशान मुन्नी अपने पापा से कहती है, "ट्रेन रुके तो मुझे खाना ला देना।"
मुन्नी के पिता जानते थे। मुन्नी ने #सोना मांग लिया है। ट्रेन अगले स्टेशन पर रुकी तो खाने की तलाश में मुन्नी के पापा नीचे उतर गए। चारों तरफ नजर दौड़ाई।
#मैकडोनाल्ड, #कैफे_कॉफी_डे, #डोमिनोज़, #पिज्जा_हट, #नेसकैफे के बड़े - बड़े स्टोर स्टेशन पर अपनी जगह घेरे खड़े थे। मुन्नी के पापा जानते थे कि उनकी इतनी क्षमता नहीं कि इन बड़े स्टोर से कुछ खरीद कर मुन्नी को खिला सकें।
अपने दिनों को याद करते हुए उनकी आंखे भर आईं। वो भी क्या दिन थे जब ट्रेन के बाहर ही चाय - चाय चिल्लाते हुए वेंडर समोसा और चाय दे जाता था। अगर सब वैसा ही होता तो 20 रुपए में मुन्नी का पेट भर देता। लेकिन भला हो सरकार का जिसने #देश_हित में स्टेशन को बेच दिया। आज 200 रुपए भी मुन्नी के पेट भरने को कम पड़ रहे हैं । मुन्नी की भूख अगर वो शांत कर देगा तो वापस आने तक उस पर पैसा कहां बचेगा? और फिर अभी दिल्ली का खर्चा भी तो है। वहां कौन सा सब सस्ता होगा? वो शून्य में देखता यही सोच रहा था।
तभी अचानक ट्रेन की सीटी बज गई। मुन्नी के पापा दौड़ कर ट्रेन पकड़ लेते हैं। मुन्नी देखते ही पूछती है, "क्या लाए मेरे लिए?"
शांत खड़े मुन्नी के पापा अपनी भूखी बिटिया को बस एकटक देखते रहते हैं।
"सब चंगा ना सी।"

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