दद्दू
- संजीव जिंदल (साइकिल बाबा)
- Sep 29, 2020
- 6 min read
चारों तरफ डिप्रेशन का माहौल है। इसी माहौल में एक कहानी जन्म लेती है। शीर्षक है #दद्दू अरे नेहा बिटिया कहां जा रही हो? बाहर देखो हल्की हल्की बारिश भी हो रही है। भीग जाओगी। बुखार आ जाएगा। मम्मी घर बैठे बैठे बोर हो गई हूं। करोना ने तो बाहर निकलना ही मुश्किल कर दिया है। मम्मी बस फ्लैट तक जा रही हूं। और छाता लेकर जा रही हूं, भीगूगी नहीं, चिंता मत करो। बेटा अंधेरा भी होने वाला है। पूरा नैनीताल सुनसान पड़ा है। लौटते हुए तुम्हें डर लगेगा। मम्मी झील के किनारे खेमचंद दद्दू बैठे हुए कोई ना कोई पेंटिंग बना रहे होंगे। उन्हीं के साथ वापस आ जाऊंगी। अच्छा जाओ! पर अपना ध्यान रखना भीगना मत। एक बात और! दद्दू से कह देना खाने के लिए कुछ खरीदे नहीं खाना हमारे साथ ही खा ले। जब कोई नैनीताल आ ही नहीं रहा तो दद्दू की पेंटिंग्स कौन खरीद रहा होगा? अरे गुड़िया आ गई तू? किसी दिन तुम्हारी मम्मी मेरी डांट लगाएगी। बुड्ढे दद्दू ने हमारी प्यारी सी बिटिया को बिगाड़ दिया। दोनों ठहाका लगाकर हंसते हैं। दद्दू क्यों बनाते हो पेंटिंग्स? करोना के कारण जब कोई नैनीताल आ ही नहीं रहा तो कौन खरीदेगा आपकी पेंटिंग? अरे गुड़िया कभी तो खुलेगा। देख लेना सारी पेंटिंग्स 1 दिन में बिक जाएंगी। देखो आज मैंने एक सूखते हुए पत्ते की पेंटिंग बनाई है। कैसी लग रही है तुम्हे? दद्दू यह तो पेंटिंग लग ही नहीं रही। मुझे तो पत्ता ही लग रहा है। तुम्हें कितनी बार कहा है अपने दद्दू की झूठी तारीफ मत करा कर। दद्दू नैना देवी की कसम खाकर कह रही हूं। बहुत सुंदर पेंटिंग! अच्छा चलो अब घर चलते हैं, काफी अंधेरा हो गया। रास्ते में शंकर भोजनालय वाला भी इंतजार कर रहा होगा, उससे दाल रोटी लेता जाऊंगा। दद्दू आज आप खाना मेरे साथ खाओगे। मम्मी ने कहा है। बेटा रोज-रोज अच्छा नहीं लगता। दद्दू आप जो रोज रोज मुझे प्यार करते हो तो मैं कहूं मुझे अच्छा नहीं लगता। नेहा की बातें सुनकर दद्दू की आंखों में पानी आ गया और दोनों घर की तरफ चल दिए। निशंक खत्री नैनीताल हाई कोर्ट में बड़े वकील है। हाईकोर्ट से थोड़ा ऊपर ही निशंक जी एक बंगले में अपनी पत्नी संतोष और प्यारी सी 14 साल की बिटिया नेहा के साथ रहते हैं। उनके घर के सामने ही एक छोटी सी लकड़ी की झोपड़ी में दद्दू रहते हैं जो पेंटिंग बेच कर अपना गुजारा करते हैं। दद्दू की झोपड़ी के साथ ही एक चिनार का पेड़ है। नेहा को वह चिनार का पेड़ बहुत पसंद है और उस चिनार के पत्ते। नेहा जब भी अपने कमरे की खिड़की के पर्दे हटाती है तो दद्दू की झोपड़ी और वह चिनार का पेड़ साफ साफ दिखाई देता है। ऐसा सुनसान नैनीताल कभी नहीं हुआ था जैसा करोना ने कर दिया था। चारों तरफ हमेशा सन्नाटा छाया रहता था। बिना उछल कूद के बच्चे भी बेकार होने लगे थे। कब तक मोबाइल पर वीडियो गेम खेलें? बच्चों को थोड़ा थोड़ा डिप्रेशन भी होने लगा था। नेहा भी काफी उदास रहने लगी थी। नेहा उठो बेटा काफी देर हो गई है। तुम्हारी ऑनलाइन क्लास का टाइम होने वाला है। नेहा सुन क्यों नहीं रही हो? नेहा ने बहुत ही भारी आवाज में कहा, मां शरीर में बहुत दर्द हो रहा है। संतोष ने नेहा के माथे पर आकर हाथ रखा तो नेहा का शरीर बुरी तरह से तप रहा था। संतोष के तो होश ही उड़ गए। कहीं नेहा को करोना तो नहीं हो गया। किसी का कहना तो मानती नहीं है। बार-बार फ्लैट पर भाग जाती है। नैनीताल में झील के किनारे बड़े से मैदान को फ्लैट कहते हैं। वही किसी से मिली होगी। और करोना हो गया होगा। निशंक रिपोर्टों का बड़ा सा लिफाफा लेकर घर में ऐंटर होते हैं। अरे संतोष घबराने की कोई बात नहीं है। नेहा को टाइफाइड है। कुछ दिन में ठीक हो जाएगा। दो-तीन दिन दवाई लेने के बाद टाइफाइड ने अपना रूप धारण कर लिया। दोपहर तक बिल्कुल ठीक दोपहर से रात तक बुखार। नेहा अपनी खिड़की में से दद्दू और चिनार के पेड़ को देख लेती थी। पता नहीं क्या हुआ भरी बरसात में भी चिनार का पेड़ सूखने लगा था। एक-एक करके उसके पत्ते गिरने लगे। दद्दू भी बचाव के कारण नेहा से मिलने नहीं आ रहे थे। पर जब नेहा ने अपनी मम्मी से जिद करी तो दद्दू को आना पड़ा। दोनों ने खूब बातचीत करी खूब खेलें। दद्दू यह चिनार का पेड़ क्यों सूख रहा है? गुड़िया मुझे लगता है यह पेड़ भी प्यार का भूखा है। इतने टूरिस्ट आते थे, सभी इसे छूते थे और यह चिनार का पेड़ बहुत खुश होता था। खूब लहराता था। अब कोई 4 महीने से आया नहीं? शायद इसे भी अच्छा नहीं लग रहा। इसलिए धीरे-धीरे मर जाने लगा है। नेहा हल्का फुल्का डिप्रेशन का शिकार तो थी ही! टाइफाइड के कारण कमरे में पड़े पड़े डिप्रेशन और हावी होने लगा था। नेहा के मन में पता नहीं कहां से आ गया कि चिनार का वह बड़ा सा पत्ता जब गिरेगा तब वह भी मर जाएगी। आज दद्दू फिर नेहा से मिलने आए थे। दद्दू मुझे भी कुछ अच्छा नहीं लग रहा। मुझे लगता है कि जैसे ही वह चिनार का बड़ा सा पत्ता गिरेगा, मैं भी मर जाऊंगी। गुड़िया ऐसी बातें करके क्या अपने दद्दू को समय से पहले ही मार दोगी? ना वह पत्ता गिरेगा और ना ही तुम्हें कुछ होगा। अब तो दद्दू का ध्यान हमेशा चिनार के पेड़ पर ही रहता था। अब पेड़ पर उस पत्ते के साथ केवल तीन चार पत्ते ही रह गए थे। दद्दू भी काफी टेंशन में रहने लगे थे। शाम को दद्दू नेहा के साथ बैठे हुए थे। दद्दू देखो कितनी तेज हवा चल रही है और बारिश भी होने वाली है। मुझे लगता है आज है पत्ता गिर जाएगा और मैं भी जागेश्वर बाबा के पास चली जाऊंगी। दद्दू बहुत भारी मन से अपनी झोपड़ी में वापस आ जाते हैं और उस पत्ते को जोर-जोर से लहराते हुए देखते रहते हैं। बहुत तेज बारिश होने लगी है। दद्दू का ध्यान नेहा के कमरे की तरफ ही है। जैसे ही नेहा के कमरे की लाइट बंद हुई। दद्दू छाता और अपना ब्रश पेंट लेकर नेहा की खिड़की के बाहर आकर बैठ जाते हैं। दद्दू उस चिनार के पत्ते को देख देख कर खिड़की के शीशे पर अपना ब्रश चलाने लगते हैं। तेज हवा का झोंका कब दद्दू के छाते को उड़ा कर ले जाता है, दद्दू को पता ही नहीं चलता। दद्दू की नजर पत्ते पर है और ब्रश शीशे पर चल रहा है। कुदरत का करिश्मा देखें जैसे ही ब्रश रुका वैसे ही पत्ता गिरा। दद्दू ने मोटा सा पुराना कोट पहन रखा था। दद्दू बारिश में बुरी तरह से भीग चुके थे पर उन्हें होश ही नहीं था। दद्दू तो बार-बार अपनी कलाकृति को निहार रहे थे जो उन्होंने नेहा के खिड़की के शीशे पर बनाई थी। हूबहू जिंदा चिनार का पत्ता। दद्दू उठे और अपनी झोपड़ी में जाकर वैसे ही भीगे हुए लेट गए। अगले दिन संतोष ने जैसे ही खिड़की पर से पर्दा हटाया नेहा पत्ता देखकर खुश हो गई। उसे लगा जब इतनी तेज बारिश और तूफान पत्ते का कुछ नहीं कर सका तो मेरा भी कुछ नहीं होगा। दिन गुजर गया और पूरा दिन दद्दू को किसी ने नहीं देखा। रात भी गुजर गई। अगले दिन दद्दू की झोपड़ी से थोड़ा दूर ही चौराहे पर चाय की दुकान पर बात होने लगी। कल से दद्दू दिखाई नहीं दिए। बिल्कुल सही कह रहे हो, कल भी चाय पीने नहीं आए और आज भी अभी तक नहीं आए हैं। चलो देख कर आते हैं। दद्दू का कोट और पजामा अभी भी भीगा हुआ था। दद्दू ठंड के कारण पत्थर हो चुके थे। दद्दू की आत्मा जागेश्वर बाबा के पास जा चुकी थी। प्रशासन को खबर कर दी गई और दद्दू का अंतिम संस्कार हो गया। मम्मी दद्दू को बुला दो। मुझे दद्दू के साथ खेलना है। बेटा हल्द्वानी में लॉकडाउन खुल गया है। दद्दू अपनी सारी पेंटिंग्स के साथ कुछ दिन के लिए हल्द्वानी चले गए हैं। तीन-चार दिन में सारी पेंटिंग्स बिक जाएगी। और दद्दू वापस आ जाएंगे। अब तुम भी कोशिश करके तीन-चार दिन में सही हो जाओ। फिर दद्दू के साथ फ्लैट पर जाकर खूब खेलना। सात आठ दिन में नेहा बिल्कुल ठीक हो गई। उसे दद्दू के बारे में बता दिया गया। नेहा बाहर आई पर उसे चिनार का पेड़ कहीं दिखाई नहीं दिया। जैसे ही उसकी नजर खिड़की के शीशे पर पड़ी। द....द्दू आप इतने बड़े कलाकार थे। दुनिया आप को पहचान नहीं पाई। नेहा बेटा तुम्हें बहुत देर हो गई, इस खिड़की के पास बैठे हुए, देखो अब धूप भी चली गई है। चलो अंदर चलो। संतोष ने नेहा को बाजू पकड़कर उठाया और दोनों अंदर आ गई।

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