खुशी
- संजीव जिंदल (साइकिल बाबा)
- Sep 29, 2020
- 4 min read
पितृपक्ष चल रहा है। पितृपक्ष ने ही मेरी कहानी को जन्म दिया है, शीर्षक है...... #खुशी
खुशी बेटा चलो उठ जाओ! खुशी अपनी आंखे मलती हुई मम्मी थोड़ी देर और सो जाने दो। नहीं बेटा आज बहुत काम है। आज आपको जल्दी उठना ही पड़ेगा। आज पितृपक्ष है। ठीक 7:30 बजे पंडित जी आ जाएंगे। मैं नहाने जा रही हूं। फिर मुझे नहा कर खाना भी बनाना है। तुम उठ जाओ ब्रश वगैरह कर लो, फिर मेरे बाद नहा लेना।
मम्मी यह पितृपक्ष क्या होता है और पंडित जी हमारे यहां क्या करने आ रहे हैं? रेणुका सवाल सुनकर कुछ पल के लिए पत्थर सी हो गई। फिर रेणुका ने अपने आप को संभाला। बेटा जब कोई अपना खास, जब कोई अपना प्रिय, अपने को छोड़कर चला जाता है तो पितृपक्ष में उसकी याद में पंडित जी को खाना खिलाया जाता है। और कहते हैं वह खाना अपने प्रिय या खास तक पहुंचता है। बेटा आज तुम्हारे पापा का पहला पितृपक्ष है। उनकी याद में ही पंडित जी को खाना खाने के लिए बुलाया है। तुम्हारे पापा की मनपसंद दाल मखनी और आलू गोभी मुझे बनानी है। अब तुम उठ जाओ! रेणुका की आंखें भर आई थी इसलिए वह तेजी से बाथरूम में घुस जाती है।
बरेली पीलीभीत बायपास पर कृष्णा अपार्टमेंट में 2 साल पहले तक अंकित अपने परिवार के साथ हंसी खुशी से रहता था। फिर एक एक्सीडेंट अंकित को रेणुका और खुशी से बहुत दूर ले गया। रेणुका जीएसटी डिपार्टमेंट में क्लर्क है। और 6 साल की खुशी व्यास वरड स्कूल में पहली क्लास में पढ़ती है।
रेणुका नहा कर आ जाती है और खुशी भी ब्रश कर चुकी होती है। देखो बेटा खुशी मैंने पानी की बाल्टी भर कर रख दी है। तुम भी नहा कर जल्दी से आ जाओ और खाना बनाने में मेरी मदद करो। फिर तुम्हें भी स्कूल जाना है और मुझे ऑफिस।।
खुशी अपनी फ्रॉक पहनकर किचन में आ जाती है। उसके हाथ में एक बैग होता है। बेटा यह बैग क्यों लेकर आई है? अरे मम्मी तुम भी बहुत बड़ी भुलक्कड़ हो। इसमें मेरा कुकिंग सेट है। जो दशहरा मेले में पापा ने दिलवाया था। पापा को मेरा खाना बहुत पसंद था। मैं भी खाना बनाऊंगी। और पंडित जी को मेरा खाना खाना पड़ेगा। ताकि मेरे पापा को मजा आ जाए। मम्मी आप दाल और खीर बनाओ। मैं आलू गोभी और हलवा बनाती हूं। खुशी ने अपना कुकिंग सेट किचन के फर्श पर सजा लिया। और झूठ मूठ की आलू गोभी और हलवा बनाने लगी।
रेणुका समझ गई खुशी अपनी जिद्द नहीं छोड़ेगी। क्योंकि जब से खुशी ने अपना कुकिंग सेट लिया था तब से वह अंकित को ऐसे ही खाना खिलाती थी। और अंकित भी बहुत मजे से खुशी का खाना खाता था। रेणुका खुशी का दिल भी नहीं तोड़ना चाहती थी। तो रेणुका करें भी तो क्या करें? कुछ सोचकर रेणुका ने पंडित जी को फोन मिलाया। और सारी बात बताने के बाद कहा, पंडित जी आपको केवल दाल के साथ ही पुडी खानी पड़ेगी। आलू गोभी की सब्जी झूठ मूठ की होगी। पर पंडित जी झूठ मूठ की सब्जी में प्यार बहुत होगा। पंडित जी को रेणुका की बात समझ आ गई और पंडित जी ने कहा बेटा चिंता मत करो, मैं आ रहा हूं।
पंडित जी को आसन पर बिठा दिया गया। रेणुका ने बड़े सम्मान और आदर के साथ पंडित जी को थाली परोसी। खुशी अपने दो नन्हे नन्हे से भगोने लेकर पंडित जी के सामने आकर बैठ गई। और छोटे से चम्मच से आलू गोभी की सब्जी पंडित जी की थाली में रख दी। पंडित जी सब्जी खाकर बताओ कैसी बनी है? हलवा खाना खाने के बाद दूंगी। आ हा लल्ली मजा आ गया ऐसी सब्जी मैंने आज तक नहीं खाई। पंडित जी थोड़ी सी और रख दूं। हां बेटा हां थोड़ी ज्यादा रख देना। पंडित जी ने दाल के साथ पूड़ी खाई और उसके बाद खीर खाई। पंडित जी उठने लगे। अरे पंडित जी अभी कैसे उठ जाओगे? अभी तो आपको मेरा हलवा खाना है। अरे लल्ली मैं तो भूल ही गया था। लाओ लाओ जल्दी-जल्दी दो बहुत अच्छी खुशबू आ रही है। खुशी ने छोटे से चम्मच से हलवा पंडित जी की थाली में परोस दिया। पंडित जी ने भी फूंक मार मार कर हलवा खाया। जैसे कितना गर्म हो।
जाते हुए रेणुका ने पंडित जी को ₹101 दक्षिणा के दिए। पंडित जी फ्लैट से बाहर निकल कर अपने जूते पहन रहे थे और उन्होंने खुशी को आवाज दी। जी पंडित जी! बेटा मुझे मालूम है आप के पापा इतना स्वादिष्ट खाना खाने के बाद आपको चॉकलेट के पैसे देते थे। यह रखो पैसे और बढ़िया सा चॉकलेट ले कर खा लेना। और पंडित जी जल्दी से लिफ्ट की ओर चल दिए।
रेणुका ने खुशी के हाथ में ₹101 देखें। तो खुशी ने रेणुका को सारी बात बता दी। रेणुका ने पंडित जी को फोन लगाया, पंडित जी आपने यह क्या किया? बेटा मेरी 70 साल की उम्र हो गई है। और पिछले 30 साल से पितृपक्ष का भोजन ग्रहण कर रहा हूं। पर आज तक मैंने पितृपक्ष का ऐसा भोजन कभी नहीं खाया। खुशी बिटिया को मेरा प्यार कहना।

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